शाबर मन्त्र साधना सम्बंधी के
नियम, तथ्य व निर्देश
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“गोपनीयं, गोपनीयं प्रयत्नतः” की शिक्षा हमेशा ध्यान में रखें | अपनी साधना की
चर्चा, साधना के दौरान उत्पन्न अनुभव आदि किसी से ना कहें | ये सब बाते गुप्त रखे
|
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विश्वास सबसे बड़ी चीज हैं इसलिए पहले खुद पर
विश्वास रखे और जो मन्त्र आप सिख रहे हैं, उन पर भी विश्वास रखे |
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शाबर मंत्रो की साधना किसी भी शनिवार, रविवार,
मंगलवार, होली, दिवाली, ग्रहण तथा किसी भी शुभ महूर्त के दिन अथवा रात में इनकी
साधना की जा सकती है |
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जिस दिन साधना करनी हो उस दिन अपनी इच्छानुसार
स्नान आदि करके किसी स्वच्छ स्थान या अपने ईष्ट देव के सामने शबर मन्त्र की साधना
की हा सकती हैं |
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साधना के लिए आप काला कम्बल, कुश आदि के आसन का
प्रयोग कर सकते हैं | मुख्यतः काला कम्बल ठीक रहेगा |
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शाबर मन्त्र के जप से पहले गुरु, गणेश, ईष्ट आदि
की पूजा कर के उनसे सिधि में सहायक होने के लिए प्रार्थना करे |
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इस साधना को किसी भी
जाति, वर्ण, आयु का पुरुष या स्त्री कर सकती है।
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इन मन्त्रों की साधना में गुरु की इतनी आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि इनके प्रवर्तक स्वयं सिद्ध साधक
रहे हैं। इतने पर भी कोई निष्ठावान् साधक गुरु बन जाए, तो कोई आपत्ति नहीं क्योंकि किसी होनेवाले विक्षेप से वह बचा
सकता है।
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साधना करते समय किसी भी रंग की धुली हुई धोती पहनी जा सकती है तथा किसी भी रंग
का आसन उपयोग में लिया जा सकता है।
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साधना में जब तक
मन्त्र-जप चले घी या मीठे तेल का दीपक प्रज्वलित रखना चाहिए। एक ही दीपक के सामने कई
मन्त्रों की साधना की जा सकती है।
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अगरबत्ती या धूप
किसी भी प्रकार की प्रयुक्त हो सकती है, किन्तु शाबर-मन्त्र-साधना में गूगल तथा लोबान की अगरबत्ती या धूप की विशेष महत्ता मानी गई है।
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जहाँ ‘दिशा’ का निर्देश न हो, वहाँ पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके साधना करनी चाहिए। मारण, उच्चाटन आदि दक्षिणाभिमुख होकर करें। मुसलमानी
मन्त्रों की साधना पश्चिमाभिमुख होकर करें।
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जहाँ ‘माला’ का निर्देश न हो, वहाँ कोई भी ‘माला’ प्रयोग में ला सकते हैं। ‘रुद्राक्ष की माला सर्वोत्तम होती है। तथा मुसलमानी
मन्त्रों में ‘हकीक’ की माला प्रयोग करें। माला संस्कार आवश्यक नहीं है। एक ही माला पर कई मन्त्रों का जप किया जा सकता है।
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शाबर मन्त्रों की
साधना में ग्रहण काल का अत्यधिक महत्त्व है। अपने सभी मन्त्रों से ग्रहण काल में कम से कम एक बार हवन अवश्य करना चाहिए। इससे वे जाग्रत रहते हैं।
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हवन के लिये मन्त्र
के अन्त में ‘स्वाहा’ लगाने की आवश्यकता नहीं होती। जैसा भी मन्त्र हो, पढ़कर अन्त में 21, 41, 108 बार गूगल, लोहबान व हवन सामग्री से आहुति दें।
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‘शाबर’ मन्त्रों पर पूर्ण
श्रद्धा होनी आवश्यक है। अधूरा विश्वास या मन्त्रों पर अश्रद्धा होने से फल नहीं मिलता।
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साधना काल में एक
समय भोजन करें जिससे की आलस नहीं होगा और नींद की समस्या उत्पन्न नहीं होगी |
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ब्रह्मचर्य-पालन करें। मन्त्र-जप करते समय स्वच्छता का ध्यान रखें।
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साधना काल के दौरान झूट,
लालच, छल - कपट व किसी की बुराई या चुगली ना करे और ना ही किसी का अपमान करे
विशेषकर कन्या, स्त्री, संत व्यक्ति आदि |
v साधना दिन या रात्रि किसी भी समय कर सकते हैं। इन साधनाओं में समय की
प्रतिबन्धता नहीं होती, हाँ फिर भी एक बात जरुर बताना चाहूँगा की जिस समय कोई एक
साधना शुरू की है और वो एक दिन से अधिक की साधना है तो वो पूरी साधना उसी समय करनी
होगी जिस समय पहले दिन की थी |
v कई लोगो को साधना के
दौरान कुछ भयानक अनुभव होए हैं लेकिन इनसे घबराना नहीं चाहिए ये सिर्फ मन का डर
होता हैं |
v धेर्य और साहस से जप
करे | निष्ठा से ही प्रत्येक कार्य में सिद्धि मिलती हैं |
v शबर मन्त्रो की
साधना में निम्बू की बलि जरुर ही देनी चाहिए | मन्त्र पढ़ते हुए निम्बू को काट कर
हवन की अग्नि में निचोड देना चाहिए | और नारियल की भी बलि देनी चाहिए |
v शाबर ‘मन्त्र’ जैसा लिखा है वैसा की पढ़ना / जप करना हैं| इनमे त्रुटि निकालकर इनमे कोई काट
छांट नहीं करनी है | जिस तरह आपको दिया गया है वैसा ही जप करे |
v मन्त्र का जाप कहीं
भी कर सकते हैं, घर पर, देवालय में,अपने ईष्ट देव के सम्मुख, एकान्त स्थान पर जहाँ
मानव का संचार बहुत ही कम हो |
v यदि शाबर मन्त्र की साधना अधूरी छूट जाए या साधना में कोई कमी रह जाए, तो किसी प्रकार की हानि नहीं होती।
अत्यन्त महत्वपूर्ण ज्ञान
ReplyDeleteसत नमो गुरु जी को आदेश आदेश